Monday, September 28, 2009

मेरा अपना रावन

मेरा अपना पर्सनल रावन आज थोड़ा थोड़ा जल जाएगा
मेरा राम ही उसे जलाएगा

सो आज शाम मैं मनन  करने बैठूंगा
लेखा जोखा खोला जाएगा
एक पूरे साल के कारनामो को
राम और रावन में बँटा जाएगा

राम अपने हिस्से से रावन को मारने का समान खरीद लेता हैं मुझसे
और रावन मरने से पहले पूरी टक्कर का समान जुटा लेता हैं
मरना तोह हैं पर युद्घ जरूर करता हैं

क्या रावन को मालूम हैं की वोह मरेगा ?
जब मैने रावन से यह पुछा तोह वोह हँस के बोला,
अबे, अगर पिछले साल मैं मर गया होता
तोह इस साल तू राम को याद करता!
अगर मैं मर जाता तोह राम भी ख़तम हो जाता
राम का अस्तित्व मुझसे ही हैं
मुझे जिस दिन पूरा मार दोगे तोह राम की जरूरत ख़तम हो जायेगी
और अगर मैने राम को मार दिया तोह
तुम्हें रामायण फिर लिखनी पड़ेगी और
हिंदुत्व के ठेकेदारों को मेरी आरती उतरनी पड़ेगी
फिर लंका में मेरा मन्दिर बनाना पड़ेगा
इसलिए बस चुप चाप यह मान लो
की "राम ने रावण को मार दिया"
मिठाई खाओ और खुशियाँ मनाओ

मैं बोला की सुन रावण, यूँ चुप चाप बात मानने का आईडिया मुझपे नही चलता
सच सच सब कुछ बता की यह खेल क्या हैं

वोह घम्भीर होके बोला, की बेटा खेल समझना हैं तोह अपने अन्दर देख
मैं दिख रहा हूँ ?
मैं बोला हाँ, तू दिख रहा हैं
और यह क्या!
तू तोह राम का हाथ पकडे बैठा हैं
तुम दोनों में यारी कब हो गई?

वोह बोला की बेटा अब तू राज़ समझ गया
हम दोनों तोह भांड हैं
हर साल खेल खेलते हैं
लोगों का मन बहलाते हैं
लोग भी खुश की रावण मर गया
उनको भी कुछ न कुछ तोह मारने को चाहिए
बेजान ज़िन्दगी की भडास इसी बहने निकल जाती हैं

पुतले नही जलते दुशेहरे पे
हमारे ही कुछ हिस्से जल मरते हैं
ताकि नए सिरे से रावन को राम में बदल सके
अगले दुशेहरे के लिए ...

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