एक बाबा जिसने एक ही सांस में अहिंसा का दम भरा और सेना बनाने का वादा भी किया
फिर आये हमारे अन्ना जिसने उसी अहिंसा के चीथड़ों को अगले ही दिन सिया
और फिर सरकार बोली की यह क्या बवाल मचा रखा है
ढंग से "खाने" भी नहीं देते , यह क्या अनशन-अनशन का शोर लगा रखा है
आम-आदमी के आम का जूस सारा निचोड़ मारा
अब छिलका और गुठली के साथ गुस्सा लिए बहुत सारा
वोह चल दिया राजघाट और जंतर मंतर पे लिए तिरंगा
मिल जुल के एक समाज बनाने सतरंगा
पर रुको, मैने यहीं बैठे बैठे क्या किया यह तोह आपने पुछा ही नहीं
मैने तोह भैया आज रसगुल्ले खाए और वोह बहुत स्वाद थे
6 comments:
Fantastically original! Really enjoyed your work! Keep it up! But did it really need to be framed as a poetry? It's fine as it is!
thanx sujit...bas aaj mood tha rhyming a warna i dont care for rhyming usually :)
a good satire on current Indian political- religious BABA culture.Anna,S CASE IS DIFFERENT. well tried.
thanx dad :)
nice one bro..
so were they really tasty ?
rasgulley toh tasty hamesh hi hotey hai :)
Post a Comment