मेरा अपना पर्सनल रावन आज थोड़ा थोड़ा जल जाएगा
मेरा राम ही उसे जलाएगा
सो आज शाम मैं मनन करने बैठूंगा
लेखा जोखा खोला जाएगा
एक पूरे साल के कारनामो को
राम और रावन में बँटा जाएगा
राम अपने हिस्से से रावन को मारने का समान खरीद लेता हैं मुझसे
और रावन मरने से पहले पूरी टक्कर का समान जुटा लेता हैं
मरना तोह हैं पर युद्घ जरूर करता हैं
क्या रावन को मालूम हैं की वोह मरेगा ?
जब मैने रावन से यह पुछा तोह वोह हँस के बोला,
अबे, अगर पिछले साल मैं मर गया होता
तोह इस साल तू राम को याद करता!
अगर मैं मर जाता तोह राम भी ख़तम हो जाता
राम का अस्तित्व मुझसे ही हैं
मुझे जिस दिन पूरा मार दोगे तोह राम की जरूरत ख़तम हो जायेगी
और अगर मैने राम को मार दिया तोह
तुम्हें रामायण फिर लिखनी पड़ेगी और
हिंदुत्व के ठेकेदारों को मेरी आरती उतरनी पड़ेगी
फिर लंका में मेरा मन्दिर बनाना पड़ेगा
इसलिए बस चुप चाप यह मान लो
की "राम ने रावण को मार दिया"
मिठाई खाओ और खुशियाँ मनाओ
मैं बोला की सुन रावण, यूँ चुप चाप बात मानने का आईडिया मुझपे नही चलता
सच सच सब कुछ बता की यह खेल क्या हैं
वोह घम्भीर होके बोला, की बेटा खेल समझना हैं तोह अपने अन्दर देख
मैं दिख रहा हूँ ?
मैं बोला हाँ, तू दिख रहा हैं
और यह क्या!
तू तोह राम का हाथ पकडे बैठा हैं
तुम दोनों में यारी कब हो गई?
वोह बोला की बेटा अब तू राज़ समझ गया
हम दोनों तोह भांड हैं
हर साल खेल खेलते हैं
लोगों का मन बहलाते हैं
लोग भी खुश की रावण मर गया
उनको भी कुछ न कुछ तोह मारने को चाहिए
बेजान ज़िन्दगी की भडास इसी बहने निकल जाती हैं
पुतले नही जलते दुशेहरे पे
हमारे ही कुछ हिस्से जल मरते हैं
ताकि नए सिरे से रावन को राम में बदल सके
अगले दुशेहरे के लिए ...
मेरा राम ही उसे जलाएगा
सो आज शाम मैं मनन करने बैठूंगा
लेखा जोखा खोला जाएगा
एक पूरे साल के कारनामो को
राम और रावन में बँटा जाएगा
राम अपने हिस्से से रावन को मारने का समान खरीद लेता हैं मुझसे
और रावन मरने से पहले पूरी टक्कर का समान जुटा लेता हैं
मरना तोह हैं पर युद्घ जरूर करता हैं
क्या रावन को मालूम हैं की वोह मरेगा ?
जब मैने रावन से यह पुछा तोह वोह हँस के बोला,
अबे, अगर पिछले साल मैं मर गया होता
तोह इस साल तू राम को याद करता!
अगर मैं मर जाता तोह राम भी ख़तम हो जाता
राम का अस्तित्व मुझसे ही हैं
मुझे जिस दिन पूरा मार दोगे तोह राम की जरूरत ख़तम हो जायेगी
और अगर मैने राम को मार दिया तोह
तुम्हें रामायण फिर लिखनी पड़ेगी और
हिंदुत्व के ठेकेदारों को मेरी आरती उतरनी पड़ेगी
फिर लंका में मेरा मन्दिर बनाना पड़ेगा
इसलिए बस चुप चाप यह मान लो
की "राम ने रावण को मार दिया"
मिठाई खाओ और खुशियाँ मनाओ
मैं बोला की सुन रावण, यूँ चुप चाप बात मानने का आईडिया मुझपे नही चलता
सच सच सब कुछ बता की यह खेल क्या हैं
वोह घम्भीर होके बोला, की बेटा खेल समझना हैं तोह अपने अन्दर देख
मैं दिख रहा हूँ ?
मैं बोला हाँ, तू दिख रहा हैं
और यह क्या!
तू तोह राम का हाथ पकडे बैठा हैं
तुम दोनों में यारी कब हो गई?
वोह बोला की बेटा अब तू राज़ समझ गया
हम दोनों तोह भांड हैं
हर साल खेल खेलते हैं
लोगों का मन बहलाते हैं
लोग भी खुश की रावण मर गया
उनको भी कुछ न कुछ तोह मारने को चाहिए
बेजान ज़िन्दगी की भडास इसी बहने निकल जाती हैं
पुतले नही जलते दुशेहरे पे
हमारे ही कुछ हिस्से जल मरते हैं
ताकि नए सिरे से रावन को राम में बदल सके
अगले दुशेहरे के लिए ...
4 comments:
Interesting viewpoint Sandeep. Just highlights how important evil is for us to recognize the good in the world! very meaningful one! :-)
yes. it is true. we symbolically, burn RAVAN every year, but infact no RAVAN dies. ravan and rama are withen us. you have tried this idea meaningfully here.
raam and ravan, are all here, inside of us.
and we mortals are envied by gods, cause we can choose, we can become either of them, we can feel life running through our veins.
WE LIVE
अच्छी कविता की दोस्त!
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